चीत्कार: जयपुर के महिला चिकित्सालय में लापरवाही, एक और गर्भवती महिला की मौत

जयपुर के महिला चिकित्सालय में फिर मानवता शर्मसार! समय पर इलाज न मिलने से गर्भवती महिला की तड़प-तड़प कर मौत। क्या सरकारी अस्पताल बन गए हैं मौत के कुएं? पूरी खबर पढ़ें।

चीत्कार: जयपुर के महिला चिकित्सालय में लापरवाही, एक और गर्भवती महिला की मौत

चीत्कार: जयपुर के महिला चिकित्सालय में लापरवाही, एक और गर्भवती महिला की मौत 

जयपुर, राजस्थान – एक बार फिर, जयपुर के सांगानेरी गेट स्थित महिला चिकित्सालय में लापरवाही का घिनौना चेहरा सामने आया है। यह अस्पताल, जो गर्भवती महिलाओं के इलाज के लिए प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल होने का दावा करता है, एक बार फिर मानवता को शर्मसार करने का अड्डा बन गया है। बुधवार की शाम, एक गर्भवती महिला, निकिता स्वामी, दर्द से कराहती हुई अस्पताल पहुंची, लेकिन उसे वह इलाज नहीं मिला जिसकी उसे सख्त जरूरत थी। उसकी चीखें अस्पताल के गलियारों में गूंजती रहीं, लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी।

 

एक घंटे की तड़प: क्या यही है सरकारी इलाज? 

निकिता, जो सात महीने की गर्भवती थी, को इमरजेंसी वार्ड में भर्ती होने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। परिजनों का आरोप है कि स्टाफ ने पहले तो आनाकानी की, और जब उसे भर्ती किया गया, तो एक घंटे से भी ज्यादा समय तक कोई डॉक्टर उसे देखने तक नहीं आया। कल्पना कीजिए, एक गर्भवती महिला दर्द से तड़प रही है, जीवन और मृत्यु के बीच झूल रही है, और अस्पताल के कर्मचारी बेफिक्र बैठे हैं। क्या यही है हमारे सरकारी अस्पतालों का हाल? क्या यही है "सबका साथ, सबका विकास" का नारा?

🎨 "एक घंटे तक निकिता दर्द से तड़पती रही, और हम बेबस होकर देखते रहे। कोई डॉक्टर, कोई नर्स, कोई भी उसकी मदद के लिए नहीं आया। यह हत्या है, सरासर हत्या!" – निकिता के एक रिश्तेदार का आक्रोश।

 

अनदेखी और लापरवाही: मौत का दूसरा नाम 

यह कोई अकेली घटना नहीं है। ठीक दस दिन पहले, 21 अगस्त को, इसी अस्पताल में एक और महिला की डिलीवरी के तीसरे दिन मौत हो गई थी। ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने उसे संभाला नहीं, और लगातार ब्लीडिंग होने से उसकी जान चली गई। उस मामले में जांच के नाम पर एक कमेटी तो बना दी गई, लेकिन रिपोर्ट आज तक ठंडे बस्ते में है। सूत्रों की मानें तो, जिम्मेदार डॉक्टरों और प्रशासन में बैठे अधिकारियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। क्या यह इंसाफ है? क्या यही है "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" का असली मतलब?

 

  • लापरवाही की इंतहा

 

  • संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

 

  • जवाबदेही का अभाव

 

  • इंसाफ की उम्मीद धूमिल

 

कब जागेगा प्रशासन? कब बदलेगी व्यवस्था? 

यह सवाल हर उस नागरिक के मन में है जो इस खबर को सुन रहा है। क्या सरकार और प्रशासन इन मौतों पर सिर्फ अफसोस जताकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेंगे? क्या कोई ठोस कदम उठाया जाएगा, या फिर यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा?

 

जनता की आवाज: अब और नहीं! 

अब समय आ गया है कि जनता अपनी आवाज उठाए। हमें इन लापरवाह डॉक्टरों और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करनी होगी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में किसी और निकिता को इस तरह दर्द से तड़प-तड़प कर मरने के लिए मजबूर न होना पड़े।

 

  • अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव
     
  • डॉक्टरों और नर्सों की कमी

 

  • भ्रष्टाचार और लापरवाही

 

  • जवाबदेही की कमी

 

एक उम्मीद की किरण: क्या बदलेगा ये सिस्टम? 

हालांकि स्थिति निराशाजनक है, लेकिन हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। हमें विश्वास रखना होगा कि एक दिन यह सिस्टम बदलेगा, और हर मरीज को, चाहे वह गरीब हो या अमीर, समय पर और उचित इलाज मिलेगा। हमें उस दिन का इंतजार है जब हमारे सरकारी अस्पताल सच में "जीवन रक्षक" बनेंगे, न कि "मौत के कुएं"।

🎨 "हम चुप नहीं बैठेंगे। हम इंसाफ के लिए लड़ेंगे, और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि निकिता को इंसाफ मिले।" – एक सामाजिक कार्यकर्ता का दृढ़ संकल्प।

 

आगे की राह: क्या हो सकता है? 🧭

 

  • अस्पतालों में सुविधाओं को बेहतर बनाना

 

  • डॉक्टरों और नर्सों की भर्ती

 

  • भ्रष्टाचार पर लगाम

 

  • जवाबदेही सुनिश्चित करना
     
  • मरीजों के अधिकारों की रक्षा

 

इंसाफ की गुहार: कब सुनेगी सरकार? 

यह सिर्फ एक खबर नहीं है, यह एक चीत्कार है। यह उन सभी महिलाओं की चीत्कार है जो इस सिस्टम की लापरवाही का शिकार हुई हैं। क्या सरकार इस चीत्कार को सुनेगी? क्या वह इन मौतों की जिम्मेदारी लेगी? क्या वह इन लापरवाह डॉक्टरों और अधिकारियों को सजा देगी?

🎨 "जब तक इंसाफ नहीं मिलता, हमारी लड़ाई जारी रहेगी।"

 

आखिरी सवाल: क्या हम इंसान हैं? 

अगर हम एक गर्भवती महिला को दर्द से तड़पता हुआ देखकर भी उसकी मदद नहीं कर सकते, तो क्या हम इंसान कहलाने के लायक हैं? क्या हमारी मानवता मर चुकी है?

"कब तक मरती रहेंगी निकिताएं? अब तो जागो!"

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