लंदन से काहिरा तक दहशत: मुसलमानों के खिलाफ प्रदर्शन और मज़हबी टकराव से इंसानियत खून में लथपथ
लंदन में लाखों की भीड़ मुस्लिमों के खिलाफ़ सड़कों पर उतरी, वहीं काहिरा में मज़हबी टकराव ने 11 ज़िंदगियाँ निगल लीं। नफ़रत की राजनीति ने इंसानियत को फिर खून में लथपथ कर दिया है।

दुनिया के दो बड़े शहर — लंदन और काहिरा — इस वक्त नफ़रत की आग में जल रहे हैं। एक तरफ़ ब्रिटेन की राजधानी में 1.1 लाख से ज़्यादा लोगों का फ़ार-राइट प्रदर्शन, दूसरी तरफ़ मिस्र की राजधानी में मुस्लिम-क्रिश्चियन टकराव, और बीच में खून, चीखें और डर। सवाल यही है: आख़िर मुसलमान क्यों बार-बार निशाने पर हैं?
🇬🇧 लंदन: "बाहर करो" की गूंज
रविवार को लंदन की सड़कों पर उमड़ी 1,10,000 लोगों की भीड़।
नारे लगे: “Stop Immigration”, “Send Them Out” और “Britain First”।
माहौल इतना उग्र हुआ कि पुलिस और प्रदर्शनकारियों में सीधी भिड़ंत हो गई।
कई लोगों को गिरफ्तार किया गया, वहीं मुस्लिम परिवार घरों में बंद रहने को मजबूर हुए।
लंदन का नज़ारा ऐसा लग रहा था जैसे कोई युद्ध-क्षेत्र हो — पुलिस की ढालें, गुस्से से उबलती भीड़ और डर के साए में जीते मासूम लोग।
🇪🇬 काहिरा: मज़हबी टकराव की आग
लंदन की हलचल थमी भी नहीं थी कि मिस्र की राजधानी काहिरा से आई खौफ़नाक खबर ने दुनिया को हिला दिया।
मुस्लिम और क्रिश्चियन समुदायों के बीच झड़पें शुरू हुईं।
मामूली झगड़ा हिंसा में बदल गया — पथराव, आगजनी और मारपीट।
अब तक 11 लोगों की मौत और दर्जनों घायल।
सरकार ने कर्फ़्यू लगाया, पर गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा।
काहिरा की गलियों में चीखें, मातम और जलते मकानों का धुआँ ये बता रहा है कि जब धर्म और राजनीति टकराते हैं, तो सबसे बड़ी कीमत इंसानियत चुकाती है।
❓ क्यों मुसलमान ही निशाने पर?
इमिग्रेशन का डर: यूरोप में लंबे समय से ये धारणा बनाई जा रही है कि “मुसलमान नौकरियाँ और संसाधन छीन रहे हैं।”
आतंकवाद का ठप्पा: कुछ घटनाओं के आधार पर पूरे समुदाय को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है।
फेक न्यूज़ का ज़हर: सोशल मीडिया अफवाहों से भर चुका है — सच और झूठ का फर्क मिट जाता है।
राजनीतिक फायदा: नेताओं के लिए "हम बनाम वो" की राजनीति वोट बटोरने का आसान हथियार है।
⚠️ इंसानियत पर मंडराता सबसे बड़ा खतरा
लंदन की भीड़ और काहिरा का टकराव सिर्फ़ दो घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि एक ख़तरनाक ट्रेंड हैं।
ये दुनिया को दो हिस्सों में बाँटने की कोशिश है।
“हम और वो” की दीवार हर जगह खड़ी की जा रही है।
अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले सालों में यूरोप और मिडल ईस्ट दोनों बड़े संघर्ष की आग में धकेले जा सकते हैं।
🕊️ रास्ता क्या है?
सरकारों की ज़िम्मेदारी: नफ़रत फैलाने वालों के खिलाफ तुरंत सख्त कार्रवाई हो।
मीडिया की भूमिका: सच और झूठ में फर्क साफ़ किया जाए, अफवाहें रोकने के लिए पुख़्ता कदम उठें।
समुदायों का मेल-जोल: आम लोगों को आगे आकर दिखाना होगा कि इंसानियत मज़हब से बड़ी है।
लीडरशिप का दबाव: बड़े नेता सिर्फ बयान न दें, बल्कि नफ़रत रोकने के लिए ठोस एक्शन लें।
🔮 भविष्य की चेतावनी
आज लंदन और काहिरा हैं, कल शायद पेरिस, बर्लिन, नई दिल्ली या न्यूयॉर्क भी हो सकते हैं।
अगर इंसानियत को बचाना है तो समझ और सद्भावना की बुनियाद मज़बूत करनी होगी।
वरना धर्म और राजनीति की ये आग पूरे विश्व को जला देगी।