जवाई का जल: जीवन रेखा या सियासी प्यास?
पाली जिले के जवाई बांध के जल बंटवारे पर एक विस्तृत रिपोर्ट। क्या यह निर्णय किसानों और नागरिकों की प्यास बुझाएगा, या राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा? सच्चाई जानिए।

जवाई का जल: जीवन रेखा या सियासी प्यास?
राजस्थान की धरती, जहाँ रेत के टीले आसमान से बातें करते हैं, और सूरज की तपिश हर जीव को झुलसा देती है, वहाँ पानी का महत्व किसी अमृत से कम नहीं। पाली जिले के लिए जवाई बांध सिर्फ एक जलाशय नहीं, बल्कि जीवन रेखा है। लेकिन, इस जीवन रेखा का बंटवारा हमेशा से एक जटिल मुद्दा रहा है। इस बार भी, जब बांध के जल वितरण को लेकर संभागीय आयुक्त प्रतिभा सिंह की अध्यक्षता में बैठक हुई, तो उम्मीदें और आशंकाएं दोनों साथ-साथ थीं। क्या इस बार का फैसला किसानों की मेहनत को सींचेगा, या फिर सियासी प्यास को बुझाएगा?
जवाई बांध: एक संक्षिप्त परिचय
जवाई बांध, जिसे मारवाड़ का अमृत सरोवर भी कहा जाता है, पाली जिले की सबसे बड़ी नदी जवाई पर बना है। इसका निर्माण 1956 में शुरू हुआ था और 1968 में यह बनकर तैयार हुआ। इस बांध की क्षमता 7327 मिलियन क्यूबिक फीट (MCFT) है। यह बांध पाली और जालोर जिले के कई गांवों के लिए सिंचाई और पेयजल का मुख्य स्रोत है।
पानी का बंटवारा: आँकड़ों का खेल
इस बार जवाई बांध से सिंचाई के लिए 4900 MCFT और पेयजल के लिए 2949 MCFT पानी आरक्षित किया गया है। कागज़ पर ये आंकड़े राहत देने वाले लगते हैं। पिछले साल की तुलना में सिंचाई के लिए 500 MCFT और पेयजल के लिए 236 MCFT पानी अधिक आवंटित किया गया है। अधिकारियों का दावा है कि यह पानी पाली और जालोर के 57 गांवों की 38,671 हेक्टेयर भूमि में चारों पाण के लिए पर्याप्त है। साथ ही, यह 10 शहरों और 868 गांवों की 25 अगस्त 2026 तक की प्यास बुझाने में सक्षम है।
🎨 "पानी तो पानी होता है, चाहे वह सिंचाई के लिए हो या पीने के लिए। लेकिन, जब बात बंटवारे की आती है, तो यह सियासत का अखाड़ा बन जाता है।"
सियासत और सच्चाई: ज़मीनी हकीकत
लेकिन, क्या ये आंकड़े ज़मीनी हकीकत से मेल खाते हैं? क्या वाकई में किसानों को पर्याप्त पानी मिलेगा? क्या हर गांव तक पेयजल पहुंचेगा? ये सवाल आज भी मुंह बाए खड़े हैं। पिछले कुछ सालों में जवाई बांध के पानी का स्तर लगातार घटता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन, अनियमित वर्षा और पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है।
- सिंचाई की चुनौती: किसानों का कहना है कि नहरों की हालत जर्जर है। पानी के रिसाव के कारण खेतों तक पर्याप्त पानी नहीं पहुंच पाता। कई बार तो ऐसा होता है कि नहरों में पानी पहुंचने से पहले ही सूख जाता है।
- पेयजल की समस्या: गांवों में पेयजल की आपूर्ति अनियमित है। कई गांवों में तो टैंकरों के जरिए पानी पहुंचाया जाता है। गर्मी के मौसम में स्थिति और भी भयावह हो जाती है।
- उद्योगों की प्यास: पाली की टेक्सटाइल और डाइंग यूनिट्स रोजाना करीब 10 से 12 MCFT पानी की खपत करती हैं। यह पानी पूरे शहर की प्यास बुझाने के लिए पर्याप्त है। अगर यही हाल रहा तो अगले दो सालों में पाली को अतिरिक्त पानी की जरूरत होगी।
बैठक में उठे सवाल
बैठक में जालोर-सिरोही सांसद लुबाराम चौधरी, कैबिनेट मंत्री जोराराम कुमावत, जिला कलेक्टर पाली लक्ष्मी नारायण मंत्री, आहोर विधायक छगनसिंह राजपुरोहित समेत कई जनप्रतिनिधि और अधिकारी मौजूद थे। किसान प्रतिनिधियों ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने नहरों की मरम्मत, पेयजल आपूर्ति को सुचारू करने और उद्योगों द्वारा पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की।
किसान प्रतिनिधि प्रतापसिंह बिठियां ने कहा, "जवाई बांध का पानी किसानों के लिए जीवनदायिनी है। लेकिन, अगर पानी का सही ढंग से प्रबंधन नहीं किया गया तो यह जीवनदायिनी अभिशाप बन जाएगी।"
क्या है आगे की राह?
जवाई बांध के पानी को लेकर अब एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। सरकार, प्रशासन, किसान और उद्योग सभी को मिलकर काम करना होगा।
- नहरों की मरम्मत: सबसे पहले नहरों की मरम्मत करानी होगी ताकि पानी का रिसाव रोका जा सके।
- पेयजल आपूर्ति: गांवों में पेयजल आपूर्ति को सुचारू करना होगा। टैंकरों पर निर्भरता कम करनी होगी।
- जल संरक्षण: जल संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाना होगा। लोगों को पानी के महत्व को समझाना होगा।
- उद्योगों पर नियंत्रण: उद्योगों द्वारा पानी के इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाना होगा। उन्हें जल संरक्षण के लिए प्रेरित करना होगा।
- दीर्घकालिक योजना: जवाई बांध के पानी के लिए एक दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए योजना बनानी होगी।
उम्मीद और आशंका: एक साथ
जवाई बांध के पानी का बंटवारा एक संवेदनशील मुद्दा है। इसमें राजनीति, अर्थशास्त्र और पर्यावरण सभी शामिल हैं। अगर सभी हितधारकों ने मिलकर काम किया तो जवाई बांध का पानी पाली जिले के लिए जीवन रेखा बन सकता है। लेकिन, अगर सियासत और स्वार्थ हावी रहे तो यह जीवन रेखा प्यास बनकर रह जाएगी।
🎨 "उम्मीद पर दुनिया कायम है, लेकिन उम्मीद के साथ सच्चाई का दामन थामना भी जरूरी है।"
अंतिम वाक्य
जवाई का पानी, प्यास बुझाएगा या राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन, इतना तय है कि अगर हमने आज पानी का सम्मान नहीं किया, तो कल पानी हमारा सम्मान नहीं करेगा।