"वर्दी का कर्ज: एक परिवार की चीख, सिस्टम की चुप्पी" (Vardi ka Karz: Ek Parivar ki Cheekh, System ki Chuppi)
दौसा में ट्रेनी SI राजेंद्र सैनी की मौत पर उठे सवाल। परिवार का दर्द, सिस्टम की बेरुखी और इंसाफ की गुहार। क्या सरकार सुनेगी?
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एक परिवार का दर्द, एक सिस्टम की बेरुखी 😥
राजेंद्र सैनी, जो 2021 में सब-इंस्पेक्टर की परीक्षा में सफल हुए थे, का शव 40 घंटों से दौसा के अस्पताल के मुर्दाघर में रखा हुआ है। परिवार वाले, जिनमें उनकी बूढ़ी मां, पत्नी और बच्चे शामिल हैं, इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं। उनकी मांग है: 5 करोड़ रुपये का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी। वे कहते हैं कि राजेंद्र की मौत परीक्षा रद्द होने के बाद डिप्रेशन के कारण हुई।
मुआवजे की मांग, न्याय की गुहार 🙏
परिवार का कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे राजेंद्र का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे। वे अस्पताल के बाहर धरने पर बैठे हैं, भूख और प्यास से बेहाल, लेकिन अपने इरादे पर अटल।
🎨 "हम किसी से भीख नहीं मांग रहे हैं। हम अपने बेटे की जान की कीमत मांग रहे हैं, जिसे सिस्टम ने ले लिया।" - राजेंद्र की मां
राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप: संवेदना या सियासत? 🤔
इस बीच, राजनैतिक गलियारों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। दौसा के कांग्रेस विधायक दीनदयाल बैरवा ने सरकार पर असंवेदनशीलता का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने भर्ती परीक्षा रद्द करके पहले ही बहुत बड़ा हादसा कर दिया था, और अब जब एक निर्दोष युवा ने आत्महत्या कर ली है, तो कोई भी बोलने को तैयार नहीं है।
विधायक का आक्रोश, सरकार की चुप्पी 🗣️
बैरवा ने कहा कि 40 घंटे से परिवार धरने पर बैठा है, लेकिन कोई भी प्रशासनिक अधिकारी उनसे मिलने नहीं आया है। उन्होंने सरकार पर आंखें मूंदने और कानों में उंगली डालने का आरोप लगाया।
🎨 "सरकार ने आंखें मूंद रखी हैं। उन्हें इस परिवार का दर्द दिखाई नहीं दे रहा है।" - दीनदयाल बैरवा, कांग्रेस विधायक
राजेंद्र की कहानी: एक सपने का अंत 🌟
राजेंद्र सैनी भरतपुर जिले के रहने वाले थे और अलवर में अपने परिवार के साथ रहते थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, और वे ही घर चलाने वाले एकमात्र सदस्य थे। उनकी नौकरी लगने से परिवार में उम्मीद की किरण जगी थी, लेकिन परीक्षा रद्द होने के बाद वह डिप्रेशन में चले गए।
एक कच्चा मकान, टूटी हुई उम्मीदें 🏠
राजेंद्र का घर कच्चा था, और उनकी तनख्वाह से ही घर का खर्च चलता था। उनके परिवार में आठ भाई-बहन हैं, और सभी उनकी नौकरी पर निर्भर थे।
🎨 "जिस दिन से परीक्षा रद्द हुई, वह उसी दिन से डिप्रेशन में था। उसने कहा था, 'अब या तो परीक्षा रहेगी या फिर मैं।' " - राजेंद्र के रिश्तेदार
सिस्टम पर सवाल: क्या यह सिर्फ एक आत्महत्या है? ❓
राजेंद्र की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह सिर्फ एक आत्महत्या है, या सिस्टम की विफलता का परिणाम? क्या सरकार को भर्ती परीक्षा रद्द करने के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए था? क्या सरकार को उन युवाओं के लिए कुछ करना चाहिए था जो इस फैसले से प्रभावित हुए?
न्याय की राह: क्या इंसाफ मिलेगा? ⚖️
अब देखना यह है कि क्या सरकार इस परिवार की सुनेगी, और उन्हें इंसाफ मिलेगा। क्या राजेंद्र की मौत व्यर्थ जाएगी, या यह सिस्टम को जगाने का काम करेगी?
- परिवार की मांगें: क्या सरकार 5 करोड़ रुपये का मुआवजा देगी?
- सरकारी नौकरी: क्या परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिलेगी?
- न्यायिक जांच: क्या राजेंद्र की मौत की निष्पक्ष जांच होगी?
"ये वर्दी का कर्ज है, साहब। इसे चुकाना होगा।"